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Chandrayaan-1 और Chandrayaan-2 से क्या सीखकर Chandrayaan-3 ने रचा इतिहास, जानें तीनों मून मिशन की खास बातें

Chandrayaan-3 मून मिशन की सफलता में इसरो के पुराने दोनों मून मिशन चंद्रयान-1 और चंद्रयान-2 का अहम योगदान रहा है। इन दोनों मून मिशन द्वारा की गई स्टडी के आधार पर ही इसरो के वैज्ञानिक इतिहास रचने में सफल हो सके हैं।

Edited By: Harshit Harsh

Published: Aug 24, 2023, 03:28 PM IST

Chandrayaan-3-touchdown
Chandrayaan-3-touchdown

Chandrayaan-3 मिशन की सफलता पर आज हर भारतीय को गर्व है। देश के वैज्ञानिकों के अथक परिश्रम की वजह से भारत का यह मून मिशन सफल हो पाया है। जिस चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरना टेढ़ी खीर लग रही थी, वहां इसरो ने अपने चंद्रयान-3 को उतारकर इतिहास रच दिया है। भारतीय स्पेस एजेंसी (ISRO) के लिए यह मिशन आसान नहीं रहा है। साल 2019 में भेजे गए चंद्रयान-2 का लैंडर चांद की सतह पर उतरने से कुछ दूर पहले क्रैश हो गया था। हालांकि, इस असफलता से सीखते हुए इसरो ने अपने अगले मून मिशन यानी चंद्रयान-3 को सफल लैंडिंग करने के काबिल बनाया। आइए, जानते हैं इसरो के तीनों मून मिशन चंद्रयान-1, चंद्रयान-2 और चंद्रयान-3 के बारे में…

Chandrayaan-1

भारत का पहला मून मिशन यानी चंद्रयान-1 आज से 15 साल पहले 22 अक्टूबर 2008 को लॉन्च हुआ था। इसरो का यह एक ऑर्बिटल मिशन था, यानी इसमें कोई रोवर या लैंडर नहीं गया था। इस मिशन का काम केवल चांद के चक्कर लगाना था। भारत का यह मून मिशन दुनिया के सबसे सफल मून मिशन में से एक है। चंद्रयान-1 ने ही चांद पर पानी की खोज की थी। इस अंतरिक्षयान में कुल 11 मशीनें लगी थी, जिसे भारत, अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन, स्वीडन और बल्गारिया में डेवलप किया गया था। चंद्रयान-1 की वजह से ही इसरो अपने अगले मून मिशन चंद्रयान-2 की नींव रख पाया था।

Chandrayaan-2

ISRO का यह पहला लैंडर और रोवर वाला मून मिशन था। इसमें तीन कंपोनेंट्स ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर मॉड्यूल्स लगाए गए थे। चंद्रयान-2 में लगे X-Ray स्पेक्ट्रोमीटर की वजह से चांद की सतह पर मौजूद सोडियम के बारे में जानकारी प्राप्त हो सकी थी। अगस्त 2019 में लॉन्च हुए इस मून मिशन में चंद्रयान-3 की तरह ही विक्रम लैंडर के साथ एक रोबोट वाली गाड़ी यानी प्रज्ञान रोवर चांद की सतह पर उतरने के लिए भेजा गया था। 6 सितंबर 2019 को चांद की सतह पर लैंड होने से महज कुछ दूरी पर इसके विक्रम लैंडर से इसरो का संपर्क टूट गया था। हालांकि, क्रैश होने के बाद भी इसरो के इस मिशन को आंशिक तौर पर सफल माना जाता है।

Chandrayaan-3

चंद्रयान-2 मिशन के असफल होने के 4 साल बाद इसरो ने 14 जुलाई 2023 को चंद्रयान-3 मिशन लॉन्च किया था। इस बार भी इसमें तीन कंपोनेंट्स- प्रपल्शन मॉड्यूल, विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर भेजे गए। इसे GSLV-Mk3 रॉकेट लॉन्चर से धरती से चांद की कक्षा में भेजा गया था। करीब 40 दिनों तक धरती और चांद की कक्षा में चक्कर लगाने के बाद चंद्रयान-3 का लैंडर कल यानी 23 अगस्त को चांद की सतह पर सफलतापूर्वक उतर गया। इसरो के वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-1 और चंद्रयान-2 की स्टडी के आधार पर चंद्रयान-3 को चांद की सतह पर सफलतापूर्वक लैंड करवा दिया। इसके अलावा चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर को चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर से भी जोड़ा गया ताकि दो तरह से इससे कम्युनिकेट किया जा सके। चंद्रयान-3 का प्रपल्शन मॉड्यूल चांद की सतह के निचले ऑर्बिट में चक्कर लगा रहा है।

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Author Name | Harshit Harsh

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