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Aditya L1 सोलर मिशन की उल्टी-गिनती शुरू हो गई है। ISRO का यह पहला सोलर मिशन है। चंद्रयान-1 की तरह ही इसरो का यह सोलर मिशन एक ऑब्जर्बेटरी मिशन है, जिसमें आदित्य L1 के जरिए सूर्य के नजदीकी वातावरण का अध्य्यन किया जाएगा। चंद्रयान-3 की तरह ही भारतीय स्पेस एजेंसी के लिए यह मिशन भी खास है। अभी तक अमेरिका, यूरोप, चीन और जापान की स्पेस एजेंसियां अपना सोलर मिशन लॉन्च कर चुके हैं। इस मिशन के साथ भारत का इसरो इस लिस्ट में शामिल होने वाला पांचवीं स्पेस एजेंसी बन जाएगी। इसरो इसके अलावा मंगलयान-2 और शुक्र ग्रह के लिए भी मिशन की तैयारी कर रहा है।
Chandrayaan-3 मिशन की तरह ही इस मिशन में कई तरह की चुनौतियां हैं। धरती से सूर्य की दूरी लगभग 150 मिलियन किलोमीटर यानी लगभग 15 करोड़ किलोमीटर है। भारत का आदित्य L1 अंतरिक्ष में मौजूद L1 (लॉरेंज प्वाइंट) पर रहकर सूर्य के वातावरण की स्टडी करेगा। यह अंतरिक्ष का ऐसा प्वाइंट है, जहां सूर्य और धरती दोनों की गुरुत्वाकर्षण बेहद कम होती है। यही कारण है कि यहां अंतरिक्षयान के ईंधन की खपत बेहद कम होती है।
🚀PSLV-C57/🛰️Aditya-L1 Mission:
The launch of Aditya-L1,
the first space-based Indian observatory to study the Sun ☀️, is scheduled for
🗓️September 2, 2023, at
🕛11:50 Hrs. IST from Sriharikota.Citizens are invited to witness the launch from the Launch View Gallery at… pic.twitter.com/bjhM5mZNrx
— ISRO (@isro) August 28, 2023
सूर्य धरती के सबसे नजदीकी तारा है, जिसकी वजह से पृथ्वी को उर्जा मिलती है। दुनियाभर की स्पेस एजेंसियां पृथ्वी के अलावा अन्य ग्रहों पर जीवन की तलाश कर रही है। साथ ही, अतंरिक्ष के रहस्य को समझना चाह रही हैं।
Aditya L1 में कुल 7 पेलोड्स लगे हैं, जिसका इस्तेमाल करके सूर्य के वातावरण की जांच की जाएगी। आदित्य L1 को अंतरिक्ष के लॉरेंज प्वॉइंट तक पहुंचने में करीब 120 दिन का समय लगेगा। इस अंतरिक्षयान में कुल 7 पेलोड्स लगाए गए हैं, जिसके जरिए सूर्य के वातावरण का अध्ययन किया जाएगा।
आदित्य L1 मिशन के लिए इसरो नई जेनरेशन के PSLV-C57 रॉकेट का इस्तेमाल कर रहा है। यह PSLV सीरीज का 59वां रॉकेट है, जो काफी शक्तिशाली है। इसरो ने साल 2008 में सोलर मिशन की परिकल्पना की थी। पिछले 15 साल से इसरो के वैज्ञानिक इस मिशन की तैयारी कर रहे थे। इसके रॉकेट से लेकर लगने वाले पेलोड्स तक, सभी में भारतीय तकनीक की झलक देखने को मिलेगी। इसरो ने इसमें भारत में बने कल-पुर्जों का इस्तेमाल किया है। सूर्य के सतह का तापमान करीब 5,500 डिग्री सेल्सियस है, जिसमें कुछ भी आसानी से भस्म हो सकता है। आदित्य एल-1 यह पता लगाएगा कि सूर्य को इतनी उर्जा कहां से मिलती है। इसके अलावा सौर वातावरण के चुंबकीय क्षेत्र का भी अध्ययन किया जाएगा।
टेक्नोलॉजी और ऑटोमोबाइल की लेटेस्ट खबरों के लिए आप हमें व्हाट्सऐप चैनल, फेसबुक, यूट्यूब और X, पर फॉलो करें।Author Name | Harshit Harsh
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