
Written By Ashutosh Ojha
Published By: Ashutosh Ojha | Published: Jul 24, 2025, 07:10 PM (IST)
Meta wristband
क्या आपने कभी सोचा है कि बिना हाथ लगाए, सिर्फ सोचकर मोबाइल चला सकें? ना स्क्रीन को छूना पड़े, ना कोई बटन दबाना पड़े बस सोचो और काम हो जाए। अब ये कोई सपना नहीं है। Meta ने एक बहुत खास रिस्टबैंड (हाथ में पहनने वाला बैंड) बनाया है। ये बैंड आपके हाथ की मांसपेशियों से निकलने वाले छोटे-छोटे इलेक्ट्रिक सिग्नल्स को पढ़ सकता है। अगर आप मन ही मन सोचते हैं कि कोई ऐप खोलना है या कुछ टाइप करना है, तो ये बैंड आपकी सोच को समझ लेता है। फिर वो काम अपने आप मोबाइल या कंप्यूटर पर हो जाता है। सबसे मजेदार बात इसके लिए आपको अपना हाथ हिलाने की भी जरूरत नहीं होती।
यह बैंड Meta की Reality Labs टीम ने बनाया है और यह इलेक्ट्रोमायोग्राफी (EMG) टेक्नोलॉजी पर काम करता है। EMG टेक्नोलॉजी मांसपेशियों में चलने वाले इलेक्ट्रिकल सिग्नल्स को पकड़ती है, जो आपके ब्रेन से हाथों तक पहुंचते हैं। जब आप उंगली हिलाने के बारे में सोचते हैं, तो मांसपेशियों में हल्का सिग्नल जाता है यही सिग्नल यह बैंड पकड़ लेता है।
Imagine controlling your devices with a subtle hand or finger gesture. Our cutting-edge research turns intent and muscle signals into seamless computer control. This breakthrough wrist technology is redefining how we interact with computers—intuitive, precise, and ready for the… pic.twitter.com/2dXERZYqkY
— Meta (@Meta) July 23, 2025
इस डिवाइस में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का भी बहुत बड़ा रोल है। Meta ने करीब 10,000 लोगों पर इसका टेस्ट किया और उनके मसल्स सिग्नल्स का डेटा इकट्ठा किया। मशीन लर्निंग की मदद से इस बैंड को सिखाया गया कि कौन-सा सिग्नल कौन-सी हरकत से जुड़ा होता है। इस वजह से नया यूजर भी इसे पहनते ही यूज कर सकता है, बिना कुछ सिखाए। Meta के वैज्ञानिक पैट्रिक कैफोश के अनुसार, “यह बैंड नए यूजर के लिए भी सीधे काम करता है, चाहे उसका डेटा पहले से इसमें हो या नहीं।”
Neuralink जैसे ब्रेन इम्प्लांट्स की तुलना में Meta का यह बैंड बहुत सुरक्षित और आसान है क्योंकि इसके लिए सर्जरी की जरूरत नहीं है। यह बस एक स्मार्टवॉच की तरह पहना जाता है। यही वजह है कि इसे आम लोगों के साथ-साथ ऐसे लोग भी इस्तेमाल कर सकते हैं जिन्हें हाथ हिलाने में परेशानी होती है। Carnegie Mellon यूनिवर्सिटी में इसे रीढ़ की हड्डी की चोट वाले लोगों पर भी टेस्ट किया जा रहा है। इससे वे लोग भी कंप्यूटर से जुड़ पा रहे हैं जिनके हाथ पूरी तरह से काम नहीं करते। हालांकि Meta ने यह भी साफ किया है कि यह डिवाइस आपके “दिमाग की सोच” नहीं पढ़ता, बल्कि आपके “इंटेंशन” को समझता है। यह टेक्नोलॉजी अभी शुरुआती स्टेज में है लेकिन आने वाले सालों में यह हमारी जिंदगी बदल सकती है।