comscore

क्या है AI Deadbots? गुजरे हुए अपनों से फिर कराएगी बात ये अनोखी टेक्नोलॉजी

सोचिए कोई अपना जिसे आप खो चुके हैं, अचानक फिर से आपसे बात करे, वहीं पुराने अंदाज में हंसे या मैसेज भेजे। यही कमाल कर रही है AI डेडबॉट टेक्नोलॉजी। यह पुरानी फोटो, वीडियो और आवाज से उस इंसान को डिजिटल रूप में दोबारा जिंदा जैसा बना देती है। आइए जानते हैं इस कमाल की टेक्नोलॉजी के बारे में।

Published By: Ashutosh Ojha | Published: Aug 28, 2025, 04:07 PM (IST)

  • whatsapp
  • twitter
  • facebook
  • whatsapp
  • twitter
  • facebook

आज के समय में टेक्नोलॉजी इतनी तेजी से बदल रही है कि इंसान और मशीन के बीच की दूरी लगातार कम होती जा रही है। पहले हम केवल कल्पना कर सकते थे कि कोई इंसान मरने के बाद भी हमसे बात कर पाए, लेकिन अब यह हकीकत बनता जा रहा है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी AI की मदद से ऐसे “डेडबॉट्स” तैयार किए जा रहे हैं, जो गुजर चुके लोगों की आवाज, उनका चेहरा और उनकी आदतों तक को दोबारा जीवंत कर सकते हैं। यह सुनने में थोड़ा अजीब लगता है, लेकिन दुनिया भर में लाखों लोग इस टेक्नोलॉजी से जुड़ रहे हैं और इसे अपनाकर अपने दुख को थोड़ा हल्का करने की कोशिश कर रहे हैं।

यादों को जीवंत करने का नया तरीका

जरा सोचिए अगर किसी प्रिय इंसान को खोने के बाद आप अचानक उसकी वही प्यारी आवाज फिर से सुन लें या फोन पर उससे बात कर पाएं, तो कैसा महसूस होगा? यही काम कर रहे हैं ये AI डेडबॉट्स। इन्हें बनाने के लिए इंसान की पुरानी आवाज की रिकॉर्डिंग, फोटो, वीडियो, मैसेज और सोशल मीडिया पोस्ट जैसी डिजिटल चीजों का इस्तेमाल किया जाता है। जब ये सब डेटा सिस्टम में डाल दिया जाता है तो AI उस इंसान की तरह बोलने, लिखने और यहां तक कि वीडियो में दिखाई देने लगता है। कई परिवार इसे अपनाकर अपने गुजरे हुए प्रियजनों की यादों को और जीवंत बना रहे हैं, ताकि उनके जाने के बाद भी एक अहसास बना रहे कि वो कहीं पास ही हैं।

समाज और न्याय में नई आवाज

इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल सिर्फ परिवार तक ही सीमित नहीं है बल्कि समाज और एक्टिविज्म में भी इसका असर दिखाई देने लगा है। जैसे अमेरिका में कुछ संगठनों ने ऐसे डेडबॉट्स बनाए हैं जो गोलीबारी में मारे गए पीड़ितों की आवाज को lawmakers तक पहुंचाते हैं। यानी मरने के बाद भी उनकी आवाज दबती नहीं है बल्कि और तेजी से गूंजती है। इतना ही नहीं कुछ लोग इसे कोर्ट में भी इस्तेमाल कर चुके हैं। एक महिला ने अपने दिवंगत भाई का AI वर्जन कोर्ट में चलाया, जिससे वह न्यायाधीश के सामने अपनी बात “खुद” रख पाया। यह सब दर्शाता है कि टेक्नोलॉजी सिर्फ निजी यादों तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज में बदलाव की ताकत भी रखती है।

सुकून या सवाल?

लेकिन हर चीज के दो पहलू होते हैं। डेडबॉट्स से जहां कई लोगों को सुकून और सहारा मिल रहा है, वहीं इसके नैतिक और कानूनी सवाल भी खड़े हो रहे हैं। किसी इंसान ने अपनी मौत के बाद डेटा इस्तेमाल करने की इजाज़त दी थी या नहीं? कंपनियां कहीं परिवारों की भावनाओं का गलत फायदा तो नहीं उठा रहीं? और किसी इंसान की “डिजिटल पहचान” का मालिक कौन होगा? यही कारण है कि अब रिसर्च करने वाले लोग और सरकारें इस टेक्नोलॉजी पर सख्त नियम बनाने की सोच रहे हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक आने वाले 10 सालों में “डिजिटल आफ्टरलाइफ” इंडस्ट्री करीब 80 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकती है। यानी यह सिर्फ लोगों की भावनाओं से जुड़ा मामला नहीं है बल्कि बहुत बड़ा कारोबार भी बन सकता है।